sidh kunjika - An Overview



देवी माहात्म्यं दुर्गा सप्तशति चतुर्थोऽध्यायः

धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा ॥ १२ ॥

देवी माहात्म्यं दुर्गा सप्तशति दशमोऽध्यायः

श्री अन्नपूर्णा अष्टोत्तर शतनामावलिः

शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम् ।

ओं ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल

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अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति ॥ १४ ॥

सरसों के तेल का दीपक है तो बाईं ओर रखें. पूर्व दिशा की ओर मुख करके कुश के आसन पर बैठें.

अगर किसी विशेष मनोकामना पूर्ति के लिए सिद्ध कुंजिका स्तोत्र कर रहे here हैं तो हाथ में जल, फूल और अक्षत लेकर जितने पाठ एक दिन में कर सकते हैं उसका संकल्प लें.

श्री महिषासुर मर्दिनी स्तोत्रम् (अयिगिरि नंदिनि)

नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि ।

देवी माहात्म्यं अपराध क्षमापणा स्तोत्रम्

न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा।। । इतिश्रीरुद्रयामले गौरीतंत्रे शिवपार्वती संवादे कुंजिकास्तोत्रं संपूर्णम् ।

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